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Monday 5 February 2018

Poet Pradeep गायक कवि प्रदीप Abdul Gaffar Khan अब्दुल गफ्फार खान

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Poet Pradeep

धर्म और देशभक्ति के गायक कवि प्रदीप




फिल्म जगत में अनेक गीतकार हुए हैं। कुछ ने दुःख और दर्द को अपने गीतों में उतारा, तो कुछ ने मस्ती और शृंगार को। कुछ ने बच्चों के लिए गीत लिखे, तो कुछ ने बड़ों के लिए; पर कवि प्रदीप के लिखे और गाये अधिकांश गीत देश, धर्म और ईश्वर के प्रति भक्ति की भावना जगाने वाले थे। 


प्रदीप के गीत आज भी जब रेडियो या दूरदर्शन पर बजते हैं, तो बच्चे से लेकर बूढ़े तक सब भाव विभोर हो जाते हैं। कवि प्रदीप का असली नाम रामचन्द्र द्विवेदी था। उनका जन्म छह फरवरी, 1915 को बड़नगर (उज्जैन, मध्य प्रदेश) में हुआ था। उनकी रुचि बचपन से ही गीत लेखन और गायन की ओर थी। वे ‘प्रदीप’ उपनाम से कविता लिखते थे। 
 
 
बड़नगर, रतलाम, इन्दौर, प्रयाग, लखनऊ आदि स्थानों पर उन्होंने शिक्षा पायी। इसके बाद घर वालों की इच्छानुसार वे कहीं अध्यापक बनना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए प्रयास भी किया; पर इसी बीच 1939 में वे एक कवि सम्मेलन में भाग लेने मुम्बई गये। इससे उनका जीवन बदल गया।
 
 
उस कवि सम्मेलन में ‘बाम्बे टाकीज स्टूडियो’ के मालिक हिमांशु राय भी आये थे। प्रदीप के गीतों से प्रभावित होकर उन्होंने उनसे अपनी आगामी फिल्म ‘कंगन’ के गीत लिखने को कहा। प्रदीप ने उनकी बात मान ली। उन गीतों की लोकप्रियता से प्रदीप की ख्याति सब ओर फैल गयी। इस फिल्म के चार गीतों में से तीन गीत प्रदीप ने स्वयं गाये थे। इससे वे फिल्म जगत के एक स्थापित गीतकार और गायक हो गये।
 
 
उन दिनों भारत में स्वतन्त्रता का आन्दोलन तेजी पर था। कवि प्रदीप ने भी अपने गीतों से उसमें आहुति डाली। सरल एवं लयबद्ध होने के कारण उनके गीत बहुत शीघ्र ही आन्दोलनकारियों के मुँह पर चढ़ गये। ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालो, हिन्दुस्तान हमारा है’ तथा‘चल-चल रे नौजवान’ ने अपार लोकप्रियता प्राप्त की। इन गीतों के कारण पुलिस ने उनका गिरफ्तारी का वारंट निकाल दिया। अतः उन्हें कुछ समय के लिए भूमिगत होकर रहना पड़ा। 
 
 
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी उनके गीतों में देशप्रेम की आग कम नहीं हुई। फिल्म जागृति का गीत ‘आओ बच्चो तुम्हें दिखायें झाँकी हिन्दुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की; वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्’ हर बच्चे को याद हो गया था। ‘जय सन्तोषी माँ’ के गीत भी प्रदीप ने ही लिखे, जो आज भी श्रद्धा से गाये जाते हैं। कुल मिलाकर उन्होंने सौ से भी अधिक फिल्मों में 1,700 से भी अधिक गीत लिखे।
 
 
उन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि ‘ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा आँख में भर लो पानी; जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी’ से मिली। 1962 में चीन से मिली पराजय से पूरा देश दुखी था। ऐसे में प्रदीप ने सीमाओं की रक्षा के लिए अपना लहू बहाने वाले सैनिकों की याद में यह गीत लिखा। इसे दिल्ली में लालकिले पर प्रधानमन्त्री नेहरु जी की उपस्थिति में लता मंगेशकर ने गाया। गीत सुनकर नेहरु जी की आँखें भर आयीं। तब से यह गीत स्वतन्त्रता दिवस और गणतन्त्र दिवस पर बजाया ही जाता है।
 

अपने गीतों के लिए उन्हें अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले। इनमें फिल्म जगत का सर्वोच्च ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ भी है। अपनी कलम और स्वर से सम्पूर्ण देश में एकता एवं अखंडता की भावनाओं का संचार करने वाले शब्दों के इस चितेरे का 11 दिसम्बर, 1998 को देहान्त हो गया।
 
 
 

Abdul Gaffar Khan 

अब्दुल गफ्फार खान

 
 
 
  • एक महान राजनेता जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया
  • इनके प्रशंसक उन्हें बादशाह खान, सीमान्त खान के नाम से बुलाते थे
  • १९१९ में जब उनकी मुलाकात गाँधी जी से हुई और उन्होंने राजनीती में प्रवेश किया उन्होंने पठानों को गांधीजी का अहिंसा का पाठ पढ़ाया
 
 
 

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