knowledge calendar

Monday 29 January 2018

महात्मा गांधी,जयशंकर प्रसाद

No comments :

महात्मा गांधी




दुनिया को अहिंसा की ताकत बताने वाले मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या आज ही के दिन हुई थी. 30 जनवरी 1948 को शाम के करीब 5 बजकर 17 मिनट होने को थे, गांधी जी दिल्ली के बिरला हाउस में एक प्रार्थना सभा में हिस्सा लेने जा रहे थे. उस दिन प्रार्थना सभा के लिए गांधी जी को पांच मिनट की देर हो गई थी. गांधी जी, आभा और मनु के कंधों पर अपना हाथ रखकर प्रार्थना सभा की ओर बढ़ रहे थे, तभी सामने से नाथूराम गोडसे आ खड़ा हुआ. गोडसे बापू के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया. गांधी के साथ चल रही आभा ने गोडसे से कहा कि गांधी जी को पहले ही देर हो चुकी है, इसी दौरान गोडसे ने मनु को धक्का दिया और गांधी जी पर एक के बाद एक करके तीन गोलियां दाग दीं. जब तक किसी को कुछ समझ आता 78 साल के महात्मा गांधी की हत्या हो चुकी थी. महात्मा गांधी के आखिरी शब्द "हे राम" थे. 


जयशंकर प्रसाद


छायावादी काव्य धारा के विकास में जयशंकर प्रसाद का महत्वपूर्ण स्थान है। इनकी काव्य कृतियां छायावादी युग की प्रतिनिधि रचनाओं के रूप में जानी जाती हैं। इनके काव्य के माध्यम से छायावादी युग की विसंगतियों को आसानी से समझा जा सकता है। प्रेम पथिक (1910) से कामायनी (1936) तक प्रसाद के काव्यात्मक विकास को आसानी से रेखांकित किया जा सकता है। कानन कुसुम, चित्राधार, झरना, आंसू, लहर आदि उनकी प्रारंभिक रचनाएं हैं। नयी कल्पना की अभिव्यक्ति, नया सादृश्य विधान, चित्रात्मकता, लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, नया भाषिक संगठन आदि इनकी कविता की विशेषता है। प्रसाद उदात्त कल्पना के कवि हैं जिनके यहाँ कल्पना को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।


माखनलाल चतुर्वेदी

  

 माखनलाल चतुर्वेदी भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। उनका जन्म होशंगाबाद जिले में बाबई नामक स्थान पर हुआ था  सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार कर नई पीढी का आह्वान किया। माखनलाल चतुर्वेदी कवि होने के साथ-साथ एक पत्रकार, निबंधकार और सफल संपादक भी थे। अतः उनकी साहित्य सेवा बहुमुखी थी। उनके व्यक्तित्व की तेजस्विता और फक्कड़पन उनके काव्य में भी सर्वत्र प्रतिबिंबित हुए हैं। स्वाभिमानी और स्पष्टवादी होने के साथ में अति भावुक भी थे यही कारण है कि उनकी काव्य रचनाओं में जहां एक ओर आग है तो दूसरी और करुणा की भागीरथी भी है उनकी साहित्य सेवा को भारत सरकार ने पद्म भूषण की उपाधि तथा सागर विश्वविद्यालय में डी लिट् की उपाधि द्वारा सम्मानित किया। इनका निधन सन 1968 में हुआ।


No comments :

Post a Comment